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Showing posts from 2011

हिंदी दिवस के अवसर पर आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी द्वारा वर्ष २०११ के लिए तेलुगु भाषी हिंदी युवा लेखक पुरस्कार डॉ.पी.श्रीनिवास राव जी को प्रदान किया गया है ....

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हिंदी दिवस के अवसर पर आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी द्वारा हिंदी भाषा के विकास के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले  व्यक्तियों का सम्मान किया गया है.. जिसमें  वर्ष २०११ के लिए कडारु.मल्ल्या जी को पद्मभूषण  डॉ. मोटूरी सत्यनारायण पुरस्कार के अंतर्गत एक लाख रुपयें नकद पुरस्कार आन्ध्र प्रदेश राज्य के उपमुख्या मंत्री          श्री .दामोदर राजनरसिम्हा  एवं हिंदी अकादमी के अध्यक्ष श्री . लक्ष्मी प्रसाद जी  ने प्रदान किया है ...  तेलुगु भाषी हिन्दी युवा लेखक पुरस्कार के लिए पच्चीस हज़ार रुपये नकद पुरस्कार एवं ज्ञापिका   दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के सहायक निदेशक श्री.पी .श्रीनिवास राव जी  को प्राप्त हुआ है .. इस अवसर पर  गुरुवर  श्री .कडारु मल्ल्या जी  को एवं  श्री डॉ. पी. श्रीनिवास राव जी  को हार्दिक शुभकामनाएँ!!!!! विडियो भाग  .....चित्रावाली ..... स्वतंत्र वार्ता १५ सितम्बर ...

आंधप्रदेश राज्य हिंदी अकादमी साहित्य पुरस्कार २०११

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आंधप्रदेश राज्य हिंदी अकादमी साहित्य पुरस्कार  २०११  पुरस्कारों के लिए हिंदी साहित्यकार चयनित!!  युवा हिंदी लेखक पुरस्कार  के लिए दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निर्देशक 

अज्ञेय जन्मशती समारोह

अज्ञेय जन्मशती समारोह  के सन्दर्भ में हिंदी से तेलुगु में अनूदित कविता पठन!!!! हिंदी मूल "सबेरे उठा तो "का तेलुगु अनुवाद 

दूरस्थ शिक्षा क्षेत्रीय कार्यालय में डॉ त्रिभुवन राय का विशेष व्याख्यान

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"भारतीय दृष्‍टि से साहित्य की आत्मा रस है जिसका आधार मनुष्य के हृदय में स्थित विभिन्न भाव होते हैं। जन्मजात संस्कार के रूप में प्राप्‍त प्रेम और हास जैसे भाव ही परिपक्व होकर रस के रूप में अभिव्यक्‍त होते हैं। हमारे दार्शनिकों ने रस को आनंद रूप और रसानुभूति को ब्रह्‍म की अनुभूति के समक्ष माना है। इसके लिए यह भी स्पष्‍ट किया है कि रस का अधिकारी अथवा पात्र वह सामान्य मनुष्य होता है जिसके भीतर आस्वादन की आकांक्षा होती है। ऐसा सहृदय ही रस का मानसिक साक्षात्कार करता है और रसानुभूति के क्षण में अपनेपन, पराएपन और तटस्थता से परे निर्वैयक्‍तिकता जैसी चौथी स्थिति में रहता है। इस तनमयता से ही लोकोत्तरता प्राप्त होती है जिससे निर्मल मन वाले सहृदय को आनंद का अनुभव होता है। यह अवस्था चित्त के द्रवित होने की अवस्था होती है।"  ये विचार मुंबई से पधारे वरिष्‍ठ काव्यशास्त्रीय विद्वान प्रो.त्रिभुवन राय ने यहाँ उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के अंतर्गत सक्रिय दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के क्षेत्रीय कार्यालय में आयोजित विशेष व्याख्यानमाला के क्रम में ‘रसानुभूति का स्वरूप’ विषय पर दूरस्थ माध्यम क

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा में दूरस्थ शिक्षा का संपर्क कार्यक्रम उद्घाटित

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हैदराबाद, 24.04.2011 (प्रेस विज्ञप्ति)। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा द्वारा संचालित दूरस्थ शिक्षा  निदेशालय के क्षेत्रीय कार्यालय के तत्वावधान में आज यहाँ एम.ए. हिंदी और स्नातकोत्तर अनुवाद डिप्लोमा के दूरस्थ माध्यम के अध्ययनकर्ताओं के लिए सातदिवसीय संपर्क कार्यक्रम-सह-व्याख्यानमाला का उद्घाटन समारोह सभा के खैरताबाद स्थित परिसर में आयोजित किया गया। दूरस्थ शिक्षा  निदेशालय के सहायक निदेशक डॉ. पी. श्रीनिवास राव ने यह जानकारी दी कि इस कार्यक्रम में विभिन्न विषय विशेषज्ञ आंध्र प्रदेश  के अलग-अलग अंचलों से आए हुए छात्रों की अध्ययन संबंधी कठिनाइयों का समाधान करेंगे। उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने की तथा संपर्क अधिकारी एस.के. हलेमनी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। विषय विशेषज्ञों के तौर पर डॉ. मृत्युंजय  सिंह, डॉ. गोरखनाथ तिवारी, डॉ. बलविंदर कौर, डॉ. जी. नीरजा, डॉ. पूर्णिमा शर्मा, डॉ. साहिराबानू बी. बोरगल, डॉ. लक्ष्मीकांतम और डॉ. शशांक  शुक्ल इस शैक्षणिक कार्यक्रम में भाग ले रहे हैं तथा छात्रगण रंगारेड्डी, वरंगल, प्रकाशम, कृष्णा आदि अंचलो

दूरस्थ शिक्षा पिछड़े, वंचितों व गृहिणियों तक सीमित नहीं - डॉ. भारत भूषण

धारवाड में  ‘ दूरस्थ शिक्षा के विविध आयाम’  पर  राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं कार्यशा ला - प्रो. दिलीप सिंह, कुलसचिव, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, चेन्नई - 600 017 . दक्षिण भारत में दूरस्थ माध्यम की शिक्षा  पर हिंदी में विचार-विमर्श  का यह पहला मौका था। देशभर में उच्चशिक्षा  को सर्वसुलभ बनाने में इस माध्यम की धाक जम चुकी है। अंग्रेजी में दूरस्थ शिक्षा की बढ़ती चुनौतियों-दिशाओं और संभावनाओं पर बातें भी होती रही हैं पर हिंदी में इन पर धारदार चर्चा धारवाड में दो दिनों की इस संगोष्ठी में 21-22 जनवरी, 2011 को की गई। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास  की ओर से आयोजित इस संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए  डेक  (डिस्टेंस एजुकेशन काउंसिल ) के निदेशक  डॉ. भारत भूषण  ने गोष्ठी की इस खासियत पर खुशी  जाहिर करते हुए कहा कि उन्हें उम्मीद नहीं थी कि दक्षिण भारत के इस सुदूर स्थान पर भारत भर के इतने विद्वान जुटेंगे और हिंदी तथा हिंदुस्तान के नज़रिए से दूरस्थ शिक्षा माध्यम की परख करेंगे। भारत भूषण जी की सराहना से अभिभूत होते हुए दक

एम ए हिंदी [दूरस्थ माध्यम] पाठ्यक्रम में तत्काल प्रवेश प्रक्रिया

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विजयवाडा में दूरस्थ षिक्षा का संपर्क कार्यक्रम आयोजित विजयवाडा, 08.01.2011 (प्रेस विज्ञप्ति) दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा द्वारा संचालित दूरस्थ षिक्षा निदेषालय के अंतर्गत एम.ए. हिन्दी पाठ्यक्रम के आन्ध्रप्रदेष के अध्येताओं के निमित्त व्याख्यानमाला सह संपर्क कार्यक्रम  का उद्घाटन आज यहाँ वरिष्ठ हिन्दी सेवी श्री काज वेंकटेष्वर राव ने किया। मुख्य अतिथि के रूप में पधारे काजाजी ने इस अवसर पर कहा कि दूरस्थ माध्यम का प्रयोग करके दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, हिन्दी की उच्च स्तरीय षिक्षा को घर-घर पहुँचाने का जो कार्य कर रही है वह गाँधीजी के हिन्दी प्रचार आंदोलन का ही आधुनिक विस्तार है। सहायक निदेषक डॉ. पेरिषेट्टि श्रीनिवासराव ने संपर्क कार्यक्रम की उपादेयता पर प्रकाष डालते हुए सभा के नवीनतम दूरस्थ माध्यम के पाठ्यक्रमों एम.ए. एजुकेषन, एम.फिल., पीएचडी एजुकेषन, एम.बी.ए. (ई.एम.), बी.काम., बी.बी.ए., बी.सी.ए., पीजीडीसीए, डी.सीए., और पैरामेडिकल कोर्स की जानकारी दी। डॉ. बोडेपूडि वेंकटेष्वर राव, डॉ. जी. नागेष्वर राव तथा श्री प्रसाद जी ने भी अपने विचार प्रकट किए। उद्घाटन समारोह की अध

आलूरि बैरागी - दक्षिण के सशक्त हस्ताक्षर

आलूरि बैरागी - दक्षिण के सशक्त हस्ताक्ष र चंद्र मौलेश्वर प्रसाद हिंदी साहित्य के इतिहास में दक्षिण साहित्यकारों का उल्लेख उतना नहीं हो पाया जितने की अपेक्षा है।  ऐसे में, आलूरि बैरागी चौधरी का नाम इस बात का साक्षी है कि उनकी लेखनी ने साहित्यकारों, इतिहासकारों और पाठकों का ध्यान आकर्षित किया है।  उनके जीवनकाल में केवल एक ही हिंदी कृति ‘पलायन’ नाम से प्रकाशित हुई थी।  इसी के माध्यम से हिंदी जगत में उन्होंने अपना स्थान बनाया।   बैरागी जी का जन्म आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के तेनाली शहर के ऐतानगर कस्बे में सन्‌ १९२५ में वेंकटरायुडु और सरस्वती के घर में हुआ जो एक प्रतिष्ठित किसान परिवार था। बचपन से ही वे स्वभाव से सीधे, सरल और स्पष्टतावादी थे। उनका व्यक्तित्व मनसा, वाचा, कर्मणा एक ही था। उनके हृदय में मानव के प्रति  अटूट आस्था थी। बैरागी जी का बचपन तो शांतिपूर्व बीता पर बाद का जीवन संघर्षपूर्ण रहा। बीस वर्ष की आयु में वे प्रतिपाडु हाई स्कूल में अध्यापक बने। उन्होंने अपना लिखना-पढ़ना नहीं छोड़ा और अंग्रेज़ी, तेलुगु, हिंदी के साथ-साथ संस्कृत और उर्दू के भी ज्ञाता बने।  सन्‌ १९५० में उन्ह